History of Dwarka: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज समुंद्र के अंदर बसे प्राचीन द्वारका नगरी के दर्शन किए। भगवान श्री कृष्ण की कर्मभूमि द्वारकाधाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धापूर्वक नमन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी समंदर में डूबी द्वारकाधीश के दर्शन किए।पीएम मोदी ने पानी के अंदर द्वारका नगरी को श्रद्धांजलि अर्पित की।पीएम मोदी अपने साथ भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करने के लिए समुद्र के अंदर मोर पंख लेकर गए थे। इस रिर्पोट के ज़रिए जानते हैं प्राचीन द्वारका नगरी का इतिहास।
द्वारका शहर के अवशेष आज भी मौजूद
भारत से सटे समंदरों के साहिलों पर कई रहस्य लिखे हैं।पानी के भीतर कई अनसुनी कहानियां लिखी हैं।कई निशानियां दबी हुई हैं।द्वारका धाम हिंदू धर्म के चारों धामों में से एक है।इस नगरी का धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व है।मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था।जिसे भारत के सबसे प्राचीन शहरों में एक माना जाता है।मान्यता है कि द्वारका नगरी 12 हजार साल पुराना प्राचीन शहर है।जिसके अवशेष समंदर की गहराई में आज भी मौजूद हैं।
इस वजह से मथुरा छोड़ द्वारका पहुंचे भगवान कृष्ण
मान्यता है कि जब श्री कृष्ण ने मथुरा के राजा कंस का वध किया तो कंस के ससुर मगध पति जरासंध ने कृष्ण और यदुवंश का नाश करने की ठान ली…और वह मथुरा पर आक्रमण करने लगा।यदुवंश की सुरक्षा के लिए श्री कृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया और भगवान श्री कृष्ण ने विश्वकर्मा को द्वारकापुरी की स्थापना का निर्देश दिया, विश्वकर्मा ने एक ही रात में इस भव्य नगरी का निर्माण कर दिया।कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण यदुवंश के साथ द्वारका आकर रहने लगे। ग्रंथों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण अपने 18 साथियों के साथ द्वारका आए थे। यहां उन्होंने 36 साल तक राज किया।मान्यता है कि यदुवंश की समाप्ति और भगवान श्रीकृष्ण की जीवन।
समुंद्र में मिले थे अवशेष
कुछ वर्षों पहले नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओसियनोग्राफी को समुद्र के अंदर प्राचीन द्वारका के अवशेष प्राप्त हुए थे। अनेक द्वारों का शहर होने की वजह इस नगर का नाम द्वारका पड़ा। इस शहर के चारों तरफ से कई लम्बी दीवारें थी, जिनमें कई दरवाजे थे।ये दीवारें आज भी समुद्र के गर्त में हैं।एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1963 में सबसे पहले द्वारका नगरी का ऐस्कवेशन डेक्कन कॉलेज पुणे, डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी और गुजरात सरकार ने मिलकर किया था।इस दौरान करीब 3 हजार साल पुराने बर्तन मिले थे।इसके करीब एक दशक बाद आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया कि अंडर वॉटर आर्कियोलॉजी विंग को समंदर में कुछ ताम्बे के सिक्के और ग्रेनाइट स्ट्रक्चर भी मिले थे।
इस वजह से डूब गई द्वारका नगरी
श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी के जल विलीन होने की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी के जलमग्न होने अलग-अलग कथाएं मिलती हैं।मान्यता है कि कि दो श्राप की वजह से द्वारका डूबी थी।
पहला श्राप –
महाभारत युद्ध के बाद कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराया…उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस तरह कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी तरह पूरे यदुवंश का भी नाश होगा।
दूसरा श्राप-
प्रचलित कहानियों के मुताबिक, माता गांधारी के अलावा दूसरा श्राप ऋषियों द्वारा श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को दिया गया था। दरअसल, महर्षि विश्वामित्र, कण्व, देवर्षि नारद आदि द्वारका पहुंचे. वहां यादव कुल के कुछ युवकों ने ऋषियों से मजाक किया। वह श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेष में ऋषियों के पास ले गए और कहा कि ये स्त्री गर्भवती है। इसके गर्भ से क्या पैदा होगा।ऋषि अपमान से क्रोधित हो उठे और उन्होंने श्राप दिया कि- श्रीकृष्ण का यह पुत्र ही यदुवंशी कुल का नाश करने के लिए एक लोहे का मूसल बनाएगा, जिससे अपने कुल का वह खुद नाश कर लेंगे।
कहा जाता है कि इन श्राप के बाद सभी यदुवंशी आपस में लड़-लड़कर मरने लगे थे। सभी यदुवंशियों की मृत्यु के बाद बलराम ने भी अपना शरीर त्याग दिया था। श्रीकृष्ण पर किसी शिकारी ने हिरण समझकर बाण चला दिया था, जिससे भगवान श्रीकृष्ण देवलोक चले गए…मान्यता है इस श्राप की वजह से श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी पानी में समा गई।