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Durga Puja: क्या बांग्लादेश में हिंदू समुदाय दुर्गा पूजा मना पाएगा? कट्टरपंथियों की धमकियों से बढ़ी चिंता

Durga Puja: बांग्लादेश में दुर्गा पूजा हिंदू समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहारों में से एक है। हर साल देश के कोने-कोने में बड़े धूमधाम से इस त्योहार को मनाया जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में, दुर्गा पूजा पर हमला करने और इसे बाधित करने के उद्देश्य से कट्टरपंथी गुटों द्वारा धमकियों और हिंसक घटनाओं का सिलसिला देखा गया है। यह सवाल अब उठ रहा है कि क्या बांग्लादेश में हिंदू समुदाय को दुर्गा पूजा मनाने की स्वतंत्रता मिलेगी या नहीं?

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बांग्लादेश में दुर्गा पूजा का महत्व

दुर्गा पूजा बांग्लादेश के हिंदू समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हर साल सितंबर-अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान देवी दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, और दस दिनों तक भव्य पूजा, संगीत, नृत्य, और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। बांग्लादेश की राजधानी ढाका और चटगांव जैसे शहरों से लेकर छोटे कस्बों और गांवों तक इस पर्व की धूम देखी जाती है। यह पर्व न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक है, बल्कि बांग्लादेश की सांस्कृतिक विविधता और सौहार्द्र को भी दर्शाता है।

कट्टरपंथी हमलों और धमकियों की घटनाएं

हालांकि, बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षों से हिंदू समुदाय को दुर्गा पूजा मनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कट्टरपंथी समूहों द्वारा कई बार पूजा पंडालों पर हमले किए गए हैं, प्रतिमाओं को तोड़ा गया है, और हिंसक घटनाओं में कई लोग घायल हुए हैं। 2021 में, दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश के कई हिस्सों में हिंसक घटनाएं सामने आई थीं। सबसे बड़ी घटना कुमिल्ला जिले में हुई, जहां पूजा पंडाल में कुरान को अपवित्र करने का झूठा आरोप लगाकर उन्मादी भीड़ ने पंडालों और हिंदू घरों पर हमला किया।

इन घटनाओं के चलते कई लोग मारे गए, हजारों हिंदू परिवार डर के साये में जीने को मजबूर हो गए, और धार्मिक कार्यक्रमों को बीच में ही रोकना पड़ा। इसके बाद, कई जगहों पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई गई, लेकिन डर और अनिश्चितता का माहौल अब भी बना हुआ है।

धार्मिक सहिष्णुता और बांग्लादेश सरकार की भूमिका

बांग्लादेश का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का वादा करता है, और बांग्लादेश सरकार द्वारा बार-बार यह बयान दिया जाता है कि सभी धार्मिक समुदायों को अपने त्योहारों और धार्मिक गतिविधियों को स्वतंत्र रूप से मनाने का अधिकार है। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी कई मौकों पर कहा है कि उनकी सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

लेकिन, कट्टरपंथी ताकतों की बढ़ती गतिविधियों और धर्म के नाम पर हो रहे हमलों से यह सवाल उठता है कि क्या सरकार की ओर से पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं? अक्सर ऐसे हमलों के बाद कार्रवाई तो होती है, लेकिन कुछ समय बाद ही स्थिति जस की तस हो जाती है। कट्टरपंथियों की धमकियों और हमलों का सामना करते हुए बांग्लादेश का हिंदू समुदाय खुद को असुरक्षित महसूस करता है।

कट्टरपंथी ताकतों का बढ़ता प्रभाव

बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों का प्रभाव हाल के दशकों में बढ़ा है। कई कट्टरपंथी समूह खुलेआम हिंदू त्योहारों का विरोध करते हैं और हिंदू समुदाय को निशाना बनाते हैं। सोशल मीडिया पर भी कई बार धार्मिक उन्माद फैलाने वाली फर्जी खबरें और वीडियो वायरल होते हैं, जो सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने का काम करते हैं।

इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन बांग्लादेश के ग्रामीण इलाकों में अधिक प्रभावी हैं, जहाँ शिक्षा और सामाजिक जागरूकता की कमी है। यहां के लोग कट्टरपंथियों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली बातों में आसानी से आ जाते हैं। कट्टरपंथी गुट हिंदू मंदिरों, पूजा पंडालों, और धार्मिक उत्सवों को निशाना बनाकर अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हैं, जिससे समाज में डर और विभाजन पैदा होता है।

हिंदू समुदाय की प्रतिक्रिया

बांग्लादेश में हिंदू समुदाय लगातार ऐसे हमलों और धमकियों का सामना कर रहा है। कई हिंदू परिवार डर के कारण अपने धार्मिक कार्यक्रमों को सीमित कर रहे हैं या पूरी तरह से रद्द कर रहे हैं। पूजा आयोजक सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंतित रहते हैं और कई बार पुलिस प्रशासन से मदद की मांग करते हैं।

हालांकि, बांग्लादेश का हिंदू समुदाय अपने धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों को मनाने के लिए हमेशा से प्रतिबद्ध रहा है। लेकिन कट्टरपंथी ताकतों के डर के कारण उन्हें अपनी धार्मिक स्वतंत्रता से समझौता करना पड़ रहा है। धार्मिक स्वतंत्रता और सुरक्षा को लेकर हिंदू समुदाय के भीतर गहरी चिंता है, और उनका मानना है कि अगर सरकार ने कट्टरपंथियों पर लगाम नहीं लगाई, तो स्थिति और भी बिगड़ सकती है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता

बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे हमले और धमकियां अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी चिंता का विषय बन चुके हैं। मानवाधिकार संगठनों ने बांग्लादेश सरकार से अपील की है कि वह धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने बांग्लादेश में धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

भारत, जो कि बांग्लादेश का पड़ोसी और मित्र राष्ट्र है, ने भी इन घटनाओं पर चिंता जताई है। भारत और बांग्लादेश के बीच गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध हैं, और भारत ने कई मौकों पर बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है। हालांकि, बांग्लादेश सरकार ने भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आश्वासन दिया है कि वह धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव कदम उठा रही है।

भविष्य की चुनौतियां

बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदू समुदाय के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। कट्टरपंथी ताकतें समाज में धार्मिक तनाव और विभाजन फैलाने का प्रयास कर रही हैं, जिससे हिंदू समुदाय की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई है। बांग्लादेश सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि वह धार्मिक सहिष्णुता और शांति को बनाए रखते हुए कट्टरपंथी ताकतों को नियंत्रित करे।

इसके अलावा, समाज में शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है, ताकि लोग धर्म के नाम पर हिंसा और असहिष्णुता से दूर रहें। सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों और अफवाहों को रोकने के लिए सख्त कानूनों और त्वरित कार्रवाई की जरूरत है।

बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के सामने दुर्गा पूजा के दौरान कट्टरपंथी ताकतों से मिल रही धमकियां चिंता का विषय हैं। धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बांग्लादेश सरकार को और अधिक सख्त कदम उठाने की जरूरत है। साथ ही, समाज में धार्मिक सहिष्णुता और शांति को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। जब तक सरकार और समाज मिलकर इन चुनौतियों का सामना नहीं करते, तब तक बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यक खुद को असुरक्षित महसूस करते रहेंगे।

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