Supreme Court On SC-ST Quotas:सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति यानी SC और अनुसूचित जनजाति यानी ST के आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला दिया है….सुप्रीम कोर्ट ने 6:1 के बहुमत से फैसला दिया और साफ किया कि राज्यों को कोटा के भीतर कोटा देने के लिए एससी, एसटी में सब कैटेगरी बनाने का अधिकार है. अदालत के फैसले के बाद यह तय हो गया कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं. राज्य विधानसभाएं कानून बनाने में सक्षम होंगी.
कोर्ट ने अपने नए फैसले में राज्यों के लिए जरूरी हिदायत भी दी है…कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें मनमर्जी से फैसला नहीं कर सकतीं…इसके लिए दो शर्तें होंगी…
पहली शर्त
अनुसूचित जाति के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दे सकतीं
दूसरी शर्त
अनुसूचित जाति में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए
कोटा के भीतर कोटा क्या होता है?
आरक्षण के पहले से आवंटित प्रतिशत के भीतर एक अलग आरक्षण व्यवस्था लागू करना…यह मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि आरक्षण का लाभ समाज के सबसे पिछड़े और जरूरतमंद समूहों तक पहुंचे, जो आरक्षण प्रणाली के तहत भी उपेक्षित रह जाते हैं. इसका सीधा मकसद आरक्षण के बड़े समूहों के भीतर छोटे, कमजोर वर्गों का अधिकार सुनिश्चित करना है… ताकि वह भी आरक्षण का लाभ उठा सकें. उदाहरण के लिए SC और ST के भीतर अलग-अलग समूहों को आरक्षण दिया जा सकता है..
तमिलनाडु और कर्नाटक में पहले से है ये रिजर्वेशन
आरक्षण की इस व्यवस्था को कुछ लोग विभाजनकारी मानते हैं और तर्क देते हैं कि इससे समुदायों के बीच दरार बढ़ सकती है. वहीं एक बड़ा वर्ग इसे जरूरी मानता है. सब कैटेगरी रिजर्वेशन को अगर उदाहरण के तौर पर समझे तो तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों ने SC, ST और OBC श्रेणियों के भीतर विभिन्न उप-श्रेणियों को आरक्षण देने की व्यवस्था की है. तमिलनाडु में पिछड़ा वर्ग (OBC), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (MBC), और अति पिछड़ा वर्ग (Vanniyar) जैसी सब-कैटेगरी में ओबीसी आरक्षण लागू किया गया है. कर्नाटक में अनुसूचित जाति के भीतर दो सब कैटेगरी कोडवा और माडिगा को अलग-अलग आरक्षण दिया गया है.