राजनीति में हर दांव बहुत सोच-समझकर चला जाता है…कई बार ये मास्टरस्ट्रोक साबित होता हैं तो कई बार तीर कमान से खाली चला जाता है. 5 राज्यों में ‘चुनावी जंग’ का ऐलान हो चुका है. टिकट बंट चुके हैं और उम्मीदवार भी उतारे जा चुके हैं. वही इन सब के बीच उत्तराखंड में रूह कंपा देने वाली सर्दी के बावजूद भी सूबे की गलियों में चुनावी अलाव जला हुआ है. 70 सीटों वाली उत्तराखंड विधानसभा के लिए चुनाव 14 फरवरी को होना है और हर पार्टी चुनाव में अपनी-अपनी जीत के दावे भी कर रही है. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने अब तक 75 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है. पहली लिस्ट से आउट रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत को दूसरी लिस्ट में जगह मिली है. उन्हें पार्टी ने रामनगर विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. इससे पहले तक हरीश रावत को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं. सीएम चेहरे को लेकर उन्होंने खुद बगावती तेवर अपना लिया था.
जिसके बाद में हरीश रावत ने चुनाव ना लड़ने के भी संकेत दिए थे. लेकिन चुनाव से खुद को अलग नहीं किया था. हरीश रावत ने गेंद पार्टी के पाले में ही रखी थी. दरअसल, उत्तराखंड के रण में हरीश रावत की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि वो कांग्रेस पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं. फिलहाल प्रदेश में उनके जितना सियासी अनुभव रखने वाला कोई नेता कांग्रेस के पास नहीं है. वो 3 बार सूबे मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, और प्रदेश अध्यक्ष रहे है. हरीश रावत उत्तराखंड में कांग्रेस की रीढ़ माने जाते हैं. उनके बाद पार्टी में किसी के नाम की चर्चा चलती है तो वो हैं प्रीतम सिंह. वो भी सीएम फेस बनने की होड़ में लगे हैं. लेकिन हरीश रावत से अभी पीछे हैं. वहीं, हाल ही में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए हरक सिंह रावत की भूमिका अभी तय नहीं हो पाई है.
ऐसे में कांग्रेस हरीश रावत को खुश करते हुए चल रही है. ताकि उसे भविष्य के गर्भ में किसी मुश्किल का सामना ना करना पड़ें. बता दें कि हरीश रावत कांग्रेस के उन नेताओं में शुमार किए जाते हैं जो छोटी इकाई से राजनीतिक सफर शुरू करके आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं…हरीश रावत ने अपनी राजनीति की शुरुआत ब्लॉक स्तर से की और बाद में युवा कांग्रेस के साथ जुड़ गए. 1973 में कांग्रेस की जिला युवा इकाई के प्रमुख चुने जाने वाले वो सबसे कम उम्र के युवा थे. लेकिन उत्तराखंड में कांग्रेस ने अभी तक अपना सीएम चेहरा तय नहीं किया है. कांग्रेस इस बात को बखूबी जानती है कि हरीश रावत के बिना देव भूमि का रण जीतना मुश्किल है. वहीं, हरीश रावत भी तमाम चुनौतियों से जूझते हुए आज भी खुद को प्रदेश में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा बनाए हुए हैं.